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साँसों पर सियासत, योगी आदित्यनाथ ने दी राहत

– शहजाद पूनावाला.

अब हवाई जहाज से ऑक्सीजन होगा एयरलिफ्ट UP के लिए


कुछ लोग केवल दोष देते है !
सत्ता के भोगी होते है !
केवल BLAME GAME करते है!!!
बड़े वादें करते है और फिर जब पूरे नहीं कर पाते तो केंद्र की सरकार को और प्रधान मंत्री मोदी को दोष देते हैं !
इनमे से एक है अरविन्द केजरीवाल जिन्होंने पिछले साल घर पर ऑक्सीजन की होम डिलीवरी करवाने का वादा किया था….

अब देखिये इस मुख्यमंत्री को –
इनका नाम है योगी आदित्यनाथ। खुद कोरोना से ग्रसित है पर ध्यान सियासत पर नहीं बल्कि राहत पर।

आज एक ऐतिहासिक फैसला लिया उन्होंने – ख़ुद कोविड पॉज़िटिव होने और डाक्टरों की तरफ से आराम करने की सलाह को दरकिनार कर उत्तर प्रदेश में ऑक्सीजन की आपूर्ति को लेकर खुद युद्ध स्तर पर उतरे CM योगी। मुख्यमंत्री के अनुरोध पर पीएम ने यूपी को दिए टैंकर पहुँचाने के लिए तत्काल मुहैया कराए हवाई जहाज, एक उड़ान में एक हवाई जहाज़ से 2 ख़ाली टैंकर बोकारो पहुँचाए जाएंगे और भरे हुए टैंकर बोकारो से लखनऊ ट्रेन से आएंगे। इस पूरी साइकिल से आक्सीजन लाने में आएगी तेजी।

इससे पहले भी कई बड़े फैसले लिए गए उनके द्वारा :

जैसे कि

उर्सला ज़िला अस्पताल कानपुर
500 LPM (Litre Per Minute) ऑक्सिजन जेनरेटर प्लांट

जीवनरक्षक दवाओं के संबंध में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का निर्देश

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को टीम-11 की बैठक में रेमडेसिविर इंजेक्शन और फैबीफ्लू जैसी जीवनरक्षक मानी जा रही दवाओं की आपूर्ति की विस्तृत समीक्षा की। मुख्यमंत्री ने गृह विभाग को सख्त निर्देश दिए इन जीवनरक्षक दवाओं की कालाबाजारी में संलिप्त लोगों के विरुद्ध गैंगस्टर और रासुका जैसे एक्ट के अंतर्गत सख्त कार्रवाई की जाए, साथ ही, पुलिस महानिदेशक को इस संबंध में एक विशेष टीम गठित कर प्रदेश में छापा मार कार्रवाई के भी निर्देश दिए गए। मुख्यमंत्री ने कहा कि जीवनरक्षक दवाओं की निर्बाध आपूर्ति के लिए आवश्यक है कि इसकी लगातार माॅनिटरिंग की जाए। रेमेडेसीवीर उत्पादनकर्ता कंपनियों से लगातार संपर्क में रहें। इसके अलावा, सभी ऑक्सीजन रीफिल केंद्रों पर जिम्मेदार अधिकारियों की तैनाती की जाए। यह सुनिश्चित करें कि ऑक्सीजन का वितरण पारदर्शी ढंग से हो। ऑक्सीजन टैंकर को जीपीएस से जोड़ा जाए तथा प्लांट्स पर पर्याप्त पुलिस बल तैनात किया जाए।

कुछ और निर्देश

– वर्तमान परिस्थितियों में उत्तर प्रदेश में पूर्ण लॉकडाउन लगाने का कोई विचार नहीं है। हमें लोगों के जीवन और जीविका दोनों की ही चिंता है। परिस्थितियों का आंकलन करते हुए सरकार सभी जरूरी कदम उठा रही है। कोरोना कर्फ्यू और साप्ताहिक बंदी जैसे प्रावधानों को सख्ती से लागू किया जाए। मास्क, सैनिटाइजर और दो गज दूरी जैसे कोविड विहेवियर को पूरी ईमानदारी के साथ अमल में लाया जाए। लापरवाह लोगों के खिलाफ कठोरतम कार्रवाई की जाए।

– अस्पतालों में खाली बेड्स के बारे में हर दिन जानकारी सार्वजनिक की जाए। इससे मरीजों के परिजनों को काफी सहूलियत होगी। इंटीग्रेटेड कंट्रोल एंड कमांड सेंटर की भूमिका इस कार्य मे अत्यंत उपयोगी है। इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।

– प्रदेश में मेडिकल ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है। मांग के अनुरूप ऑक्सीजन उपलब्ध कराया जा रहा है। भारत सरकार से आवंटित ऑक्सीजन को यथाशीघ्र प्रदेश में उपलब्ध कराया जाए। ऑक्सीजन की मांग और आपूर्ति में संतुलन बना रहे इस हेतु सभी अस्पतालों में मेडिकल ऑक्सीजन का ऑडिट कराया जाना चाहिए। ऑक्सीजन की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ त्वरित और कठोरतम कार्रवाई की जाए। अति गंभीर परिस्थिति को छोड़कर किसी भी इंडिविजुअल व्यक्ति को ऑक्सीजन की आपूर्ति न की जाए। केवल संस्थागत आपूर्ति ही होगी।

– सभी ऑक्सीजन रीफिल केंद्रों पर जिम्मेदार अधिकारियों की तैनाती की जाए। यह सुनिश्चित करें कि ऑक्सीजन का वितरण पारदर्शी ढंग से हो। ऑक्सीजन टैंकर को जीपीएस से जोड़ा जाए तथा प्लांट्स पर पर्याप्त पुलिस बल तैनात किया जाए। स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा, औद्योगिक विकास, एमएसएमई तथा गृह विभाग आपसी समन्वय से इस कार्य को करें। टैंकर/सिलिंडर का कोई अभाव नहीं है। प्रत्येक अस्पताल में न्यूनतम 36 घंटे का ऑक्सीजन बैकअप होना चाहिए।

– रेमडेसिविर इंजेक्शन और फैबीफ्लू जैसी जीवनरक्षक मानी जा रही दवाओं की निर्बाध आपूर्ति के लिए आवश्यक है कि इसकी लगातार माॅनिटरिंग की जाए। ऐसी दवाओं व इंजेक्शन की कालाबाजारी करने वालों के खिलाफ एनएसए के तहत कार्रवाई की जाए। रेमेडेसीवीर उत्पादनकर्ता कंपनियों से लगातार संपर्क में रहें। कल तक प्रदेश को 10,000 बॉयल और प्राप्त हो जाएंगे। प्रतिदिन 50,000 बॉयल रेमेडेसीवीर की आपूर्ति के हिसाब से डिमांड भेजी जाए।

– कोविड से लड़ाई में जीत के लिए ‘टेस्टिंग, ट्रेसिंग और ट्रीटमेंट’ का मंत्र सबसे महत्वपूर्ण है। इसमें किसी प्रकार की लापरवाही स्वीकार नहीं है। सभी निजी एवं सरकारी कोविड टेस्टिंग प्रयोगशालाएं अपनी पूरी क्षमता के साथ टेस्टिंग कार्य करें। किसी भी प्रयोगशाला को टेस्ट करने पर कोई रोक नहीं है। जांच के लिए शुल्क की दर पूर्व में ही तय की जा चुकी है। आरआरटी की संख्या बढ़ाई जाए। क्वालिटी कंट्रोल को प्रत्येक दशा में सुनिश्चित की जाए। टेस्टिंग की वर्तमान क्षमता को दोगुनी किये जाने के ठोस प्रयास हों।

– कोविड-19 के प्रसार को देखते हुए सभी जनपदों में कोविड बेड की संख्या दो गुनी करने के लिए पूरी तत्परता से कार्यवाही की जाए। स्वास्थ्य विभाग कोविड अस्पतालों में आईसीयू तथा आइसोलेशन बेड के जनपदवार डाटा तैयार कर लें, जिससे कोरोना मरीजों को त्वरित उपचार पूरी सहजता से उपलब्ध हो सके। सभी जिलों में न्यूनतम 200-200 अतिरिक्त बेड बढ़ाये जाने के प्रयास हों।

– लखनऊ के केजीएमयू तथा बलरामपुर चिकित्सालय पूरी क्षमता के साथ डेडिकेटेड कोविड अस्पताल के तौर पर संचालित किया जाए। इस कार्य को शीर्ष प्राथमिकता दें। एरा, टीएस मिश्रा, इंटीग्रल, हिन्द, प्रसाद, सक्सेना तथा मेयो मेडिकल काॅलेज आदि डेडिकेटेड कोविड हाॅस्पिटल के रूप में क्रियाशील हैं। यहां बेड की बढ़ोतरी की जाए। इन सभी अस्पतालों के लिए अलग-अलग नोडल अधिकारी तैनात किए गए हैं। इन अस्पतालों में संसाधनों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता पर पूरा किया जाए।

– लखनऊ व प्रयागराज में मरीजों की संख्या को देखते हुए अतिरिक्त प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। प्रयागराज में स्वरूप रानी व युनाइटेड मेडिकल काॅलेज, कॅरियर सहित अन्य सभी चिकित्सकीय संस्थानों में बेड की संख्या बढ़ाने के ठोस प्रयास किए जाएं। नॉन कोविड हॉस्पिटल के सुचारु क्रियान्वयन पर भी ध्यान दिया जाए।

– दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित अन्य राज्यों से आ रहे प्रवासी कामगार/श्रमिकों की टेस्टिंग करते हुए उन्हें आवश्यकतानुसार क्वारन्टीन एवं चिकित्सा की समुचित व्यवस्था उपलब्ध कराई जाए। लक्षणविहीन लोगों को न्यूनतम एक सप्ताह और लक्षणयुक्त लोगों को 02 सप्ताह के लिए अनिवार्य रूप से क्वारन्टीन किया जाए। इनकी व्यवस्थित मॉनिटरिंग हो। कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग को बढ़ाया जाना चाहिए।

– राज्य मंत्रिपरिषद ने 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के निःशुल्क कोविड टीकाकरण कराए जाने का निर्णय लिया है। कोविड से लड़ाई में यह सबसे अहम प्रयास होगा। स्वास्थ्य विभाग इस दिशा में आवश्यक तैयारी प्रारंभ कर दे।

– स्वच्छता, सैनिटाइजेशन तथा फाॅगिंग का कार्य युद्ध स्तर पर किया जाए। इसके लिए फायर विभाग के वाहनों का उपयोग किया जाए। वर्तमान में प्रदेश में 77 हजार से अधिक कंटेनमेंट जोन बनाये गए हैं। कंटेनमेंट ज़ोन के प्राविधानों को सख्ती से लागू किया जाए। मास्क के अनिवार्य उपयोग के संबंध में प्रवर्तन की प्रभावी कार्यवाही की जाए। निगरानी समितियों से संवाद बनाकर उनसे फीडबैक लगातार प्राप्त किया जाए।

– अस्पतालों एवं ऑक्सीजन उत्पादन व रीफिलिंग से जुड़ी इकाइयों में निर्बाध विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित हो। औद्योगिक इकाइयों में कोविड प्रोटोकाॅल का पालन कराते हुए गतिविधियां संचालित की जाएं।

– बेहतर कोविड प्रबंधन में इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर की महत्वपूर्ण भूमिका है। लखनऊ सहित सभी जनपदों में इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर का प्रभावी संचालन सुनिश्चित हो। आईसीसीसी के माध्यम से बेड आवंटन की जानकारी, समय पर एम्बुलेंस की उपलब्धता आदि व्यवस्थाएं सुनिश्चित कराई जाएं।

– शुक्रवार रात 08 बजे से सोमवार प्रातः 07 बजे तक की प्रदेशव्यापी ‘साप्ताहिक बंदी’ को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।रात्रिकालीन कोरोना कर्फ्यू रात्रि 08 से सुबह 07 बजे तक प्रभावी रहे। इस दौरान आवश्यक सेवाओं और औद्योगिक इकाइयों को छोड़कर शेष गतिविधियां प्रतिबन्धित रहेंगी। कोविड संक्रमण की रोकथाम में यह महत्वपूर्ण प्रयास होगा।

– ‘108’ एम्बुलेंस सेवा की 50 प्रतिशत एम्बुलेंस का उपयोग कोविड मरीजों के लिए किया जाए। एम्बुलेंस के रिस्पाॅन्स टाइम को कम किया जाए।

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देशहित में कृषि कानूनों की वापसी?

— By Himata Ram Patel

कार्तिक पूर्णिमा के प्रकाश पर्व पर सुबह सुबह जब देश को यह सूचना मिली कि प्रधानमंत्री मोदी देश को संबोधित करने वाले हैं तो मीडिया सहित तमाम लोगों ने तरह-तरह के कयास लगाने शुरू कर दिए कि वो क्या घोषणा करने वाले हैं?

प्रधानमंत्री मोदी ने देश को संबोधित करते हुए कहा कि “तीनों कृषि कानूनों की लंबें समय से मांग हों रहीं थी। पहले की सरकारों ने भी इन कृषि कानूनों को लाने के लिए पर प्रयास किए थे। सरकार देश के 80 प्रतिशत छोटे और मध्यम किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए कृषि विशेषज्ञों और जानकारों की परामर्श पर ये कृषि क़ानून लें कर आई थी। संसद में लंबी बहस के बाद इन कानूनों को पारित किया था।”

मोदी ने आगे कहा कि “देश के कई किसान संगठनों और किसानों ने इन कृषि कानूनों का समर्थन किया। लेकिन कुछ किसानों को हम समझा नहीं पाएं। इसलिए हमने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है।

मोदी द्वारा कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा के बाद सभी विपक्षी पार्टियां अपने अपने हिसाब से सियासत करने लग गई। किसी ने कहा कि अहंकार हार गया, किसी ने कहा कि लोकतंत्र जीत गया, कोई कह रहा है कि सरकार की हार है, कोई कह रहा हैं आंदोलन की जीत है, तो कोई कहता है तानाशाही हार गयी, कोई कह रहा है कि किसान जीत गए। राहुल गांधी ने तो यहां तक कह दिया कि अहंकार का सिर झुक गया, लेकिन वास्तविकता यह है कि “कृषि सुधार” हार गए हैं।

कृषि कानूनों में खोट या विपक्ष की सियासत में?

जब से यह आंदोलन शुरू हुआ तब से लेकर आज तक सरकार यह पूछतीं रहीं कि इन कानूनों में ग़लत क्या है? लेकिन विपक्षी पार्टियां और आंदोलन करने वाले किसान नेता आज दिन तक यह नहीं बता पाए कि नए कृषि कानूनों में ग़लत क्या है?

दरअसल नए कृषि कानूनों में ऐसा कोई प्रावधान या धारा नहीं थी जिससे किसानों का अहित हो। संक्षेप में तीनों कृषि कानूनों का सार यह है कि देश के 80 फीसदी छोटे और मध्यम किसानों को उनकी उपज का अधिक से अधिक मूल्य मिल सके। इन कानूनों के माध्यम से छोटे और मध्यम किसानों को आढ़तियों, दलालों और साहुकिरों से मुक्ति दिलानी और किसानों को अपनी फसल को जब चाहे जहां चाहे बेचने की आज़ादी देना था। सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य यह था कि इन कानूनों के माध्यम से किसानों की आय को दुगुना करना था। अगर ये कानून देश में लागू हो गए होते तो कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन होता।

तो मोदी ने क़ानून वापस क्यों लिए?

तमाम कृषि विशेषज्ञों और जानकारों ने इन कानूनों को देश के किसानों के लिए जरूरी बताया। उन्होंने कहा था कि ये कृषि क़ानून कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाएंगे।

जब कानूनों में कोई खोट नहीं थी तो आखिर मोदी ने इन कानूनों को वापस क्यों लिया? दरअसल बात यह है कि इन कानूनों के विरोध में चलने वाला आंदोलन ग़लत हाथों में चला गया था। आंदोलन के नेता विदेशी ताकतों के इशारों पर देश को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।

इस आंदोलन में खालिस्तानी आतंकवादियों के सामिल होने और आंदोलन को विदेशी फंडिंग होने की जानकारी भी मिल रही थी। आंदोलन के दौरान 26 जनवरी को दिल्ली और लालकिले पर हमला, आंदोलन स्थल पर महिलाओं का बलात्कार और कई लोगों की हत्याएं हो रही थी। आंदोलन की आड़ में हाई-वे को जाम कर देश की गति को रोका जा रहा था। देश विरोधी ताकतें किसान आंदोलन की आड़ में देश को अस्थिर करना चाहती थी। अश्लील फिल्में बनाने वाली मियां खलिफा और तथाकथित पर्यावरणवादी ग्रेटा थनबर्ग से भी किसान आंदोलन के पक्ष में ट्वीट करवाएं गए। जबकि इन लोगों का भारत के किसानों से कोई लेना-देना नहीं था।

विपक्षी ने आग में घी डालने काम किया

सब कुछ जानते हुए भी मोदी को हटाने के चक्कर में विपक्षी पार्टियों ने भी आंदोलन में घी डालने का काम किया। उन्होंने न सिर्फ किसानों को भड़काया बल्कि किसानों को गुमराह भी किया। लखीमपुर-खीरी की घटना इसका उदाहरण हैं।

भोले भाले किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वाले नेताओं, विपक्षी पार्टियां की इस चाल को समझ नहीं पाए। इसलिए पीएम मोदी ने राष्ट्रहित में कृषि कानूनों को वापस ले लिया। उन्होंने देश को जलाने की साज़िश करने वालों के मंसूबों पर पानी फेरते हुए देश को बचा लिया। पाकिस्तान और खालिस्तान जो किसान आंदोलन के कंधे का इस्तेमाल करके भारत में अस्थिरता फैलाना चाह रहे थे, मोदी ने उन पर स्ट्राइक की । मोदी ने इसे नाक की लड़ाई ना बनाकर देश की लड़ाई बनाया। इसलिए पूरे देश को प्रधानमंत्री मोदी का आभार व्यक्त करना चाहिए।

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बदलती राजनीति और कांग्रेस का पतन।

— By Samir Pratap Singh


आज राजनीति सकारात्मक  बदलाव की ओर है। जनता एक साफ, स्वच्छ  और बेदाग सरकार चाहती है। इस सोच की शुरुआत आज या कल नही बल्कि काफी समय पहले ही हो गई थी।  इसके लिए हमे थोड़े इतिहास के पन्नो को टटोलने की जरूरत है!

28 मई 1996 की  वो दोपहर जब अटल जी की सरकार मात्र 13 दिनों मे गिर गई थी तब जाते जाते अटल जी ने लोकसभाध्यक्ष से कहा था कि “अध्यक्ष महोदय एक दिन वह भी आएगा जब पूरे देश मे कमल खिलेगा और भारतीय जनता पार्टी का एक छत्र राज होगा।” आज जब 15 नवंबर 2021 को भाजपा सरकार ने केन्द्र में सफलतापूर्वक लगभग 7 वर्ष पूर्ण किए तो अटल जी के उन वाक्यों से यह पता चलता है कि वो एक अच्छा राजनीतिज्ञ होने के साथ साथ एक अच्छे ज्योतिषी भी थे। भाजपा की इतनी बड़ी सफलता के पीछे थोड़ा बहुत “हाथ” विपक्ष का भी है।

आज लगभग आधे हिन्दुस्तान में भाजपा की सरकार है और जिस प्रकार से केन्द्र सरकार योजनाबद्ध तरीके से काम कर रही है मुझे तो ऐसा लगता है कि यह विजय रथ इतनी आसानी से नही थमेगा, परन्तु आज  जिस स्थिति में कांग्रेस है इसकी जिम्मेदार कही न कही वो स्वयं ही है। कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के साथ साथ भारत की सत्ता  पर आज़ादी के बाद से 60 वर्षों तक शासन करने वाली सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है ! अगर कांग्रेस ईमानदारी से शासन चलाती तो सोने की चिड़िया कहे जाने वाला देश आज गरीबी और बेरोजगारी की मार न झेल रहा होता!

कोल् ब्लॉक घोटाला, आदर्श घोटाला, 2G घोटाला, बोफोर्स घोटाला, कामनवेल्थ घोटाला, सी डब्लू जी घोटाला,टाट्रा ट्रक घोटाला, एयरसेल मैक्सिस घोटाला, अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाप्टर घोटाला और भी बहुत सारे घोटाले है जिनको गिनते गिनते आप थक जायेंगे लेकिन कांग्रेस के घोटाले समाप्त नहीं होंगे! दिग्विजय सिंह और कई दिग्गज नेताओं के बड़बोलेपन ने भी कांग्रेस की नैया ड़ूबोने में अहम भूमिका निभाई है।

इतने बड़े अर्थशास्त्री के हाथ में देश की कमान ओर देश में शून्य विकास कही न कही शीर्ष नेतृत्व की विफलता को दर्शाता है ! सोनिया गांधी की खराब सेहत और राहुल  की नादान हरकते ,चुनाव में मिल रही लगातार हार ,जाति के आधार पर राजनीति  काँग्रेस के आने वाले भविष्य पर सवालिया निशान खड़ा करतीं है ! अगर कांग्रेस राहुल गांधी मे भविष्य देखती है तो राहुल को भी नादानियां छोड़कर परिपक्वता दिखानी होगी नही तो भगवा राज का अटल जी का कथन सत्य होने में ज्यादा समय नही बचा है।

आज कांग्रेस जिस दयनीय स्थिति में दिख रही है इसकी जिम्मेदार वो खुद है। एक विशेष जाति को महत्व और हिन्दुस्तान में जन्म लेने पर शर्मिन्दा होने की बात करना कांग्रेसी नेताओं की छोटी मानसिकता का उदाहरण है।

अगर कल को ममता बनर्जी या अन्य किसी नेता की स्थिति कांग्रेस जैसी हो जाए तो शायद आपको आश्चर्य नही करना चाहिए क्योंकि इस अंधकारमय भविष्य की ममता खुद ही जिम्मेदार होंगी।अगर कांग्रेस भी अपना अस्तित्व बचाना चाहती है तो उसे भी बदलती राजनीति के साथ अपने आप में बदलाव करने की जरूरत है नही तो कांग्रेस का अंत जितना भयानक होगा उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है।

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आखिर क्यों हारी टीम इंडिया?

— By Himata Ram Patel

टी-20 वर्ल्डकप में भारत को पाकिस्तान से सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान के खिलाड़ियों के सामने जैसे भारतीय खिलाडियों ने सरेंडर ही कर दिया। आखिर भारतीय टीम की इतनी बुरी हार क्यों हुई और पाकिस्तान की ऐसी धमाकेदार जीत कैसे हुई? इसको आप कई बिंदुओं से सरल भाषा में समझ सकते हैं।

पहला बिंदु यह है कि भारतीय टीम में करोड़पति, अरबपति खिलाड़ी हैं जो केवल रिकार्ड तोड़ने के लिए खेलते हैं जबकि पाकिस्तान की टीम में मध्यम वर्गीय परिवारों के खिलाड़ी हैं जो अपना गुजारा मैच फीस और बोर्ड द्वारा देने वाले वेतन पर करते हैं।

भारतीय खिलाडियों के लिए यह मैच केवल एक ‘मैच’ था उनके अनुसार हार-जीत होती रहती हैं जबकि पाकिस्तान के खिलाड़ियों के लिए यह मैच एक ‘जंग’ थी जिसको वो हर हाल में जीतना चाहते थे।

सच बात यह है कि पाकिस्तान के खिलाड़ियों में जीतने की इतनी बैचेनी थी कि वो मैच के दौरान ही जीत के लिए नमाज़ अदा करने लगे। यह बैचेनी टीम इंडिया में बिल्कुल नहीं थी।

दूसरा बिंदु यह है कि भारतीय टीम भारी भरकम संसाधनों से सम्पन्न हैं। हमारी टीम के पास अरबपति कप्तान हैं, शानदार कोच है और अनुभवी खिलाड़ी हैं जिससे हमारी टीम में ओवर कांफिडेंस साफ़ नज़र आ रहा था। जबकि पाकिस्तान टीम के पास ऐसा कुछ नहीं है। वो केवल अपना वजूद बचाने के लिए मैदान में उतरी थीं।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड दुनिया का सबसे धनवान बोर्ड हैं जिसकी सालाना आय लगभग चार हजार करोड़ रुपए है जबकि पाकिस्तान क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की सालाना आय केवल आठ सौ करोड़ रुपए ही हैं।

भारतीय टीम के कप्तान विराट कोहली की कुल संपत्ति एक हजार करोड़ रूपए हैं जबकि पाकिस्तान टीम के कप्तान बाबर की कुल संपत्ति मात्र 29 करोड़ ही हैं।

तीसरा बिंदु यह है कि पाकिस्तान के खिलाड़ी हमेशा अपने धर्म और देश को ऊपर रखते हैं। वो सबसे पहले अपने आप को मुसलमान मानते है उसके बाद पाकिस्तानी। वो अपने देश के लिए खेलें। जब वो जीत गए तो उन्होंने इस जीत को ‘अल्लाह’ की मेहरबानी माना। मैच के बाद जब वो मीडिया से बातचीत कर रहे हैं तो वो बार बार जीत के लिए अल्लाह को धन्यवाद दे रहे थे। जबकि भारतीय टीम के करोड़पति खिलाड़ी रिकार्ड बनाने और तोड़ने के लिए खेलते हैं। जीत जाते हैं तो जीत का श्रेय खुद या खिलाड़ियों को दे देते हैं और हार जाते हैं तो पिच ख़राब थी का बहाना बनाकर इतिश्री कर लेते हैं।

जब देश का मुद्दा आता है तो पाकिस्तानी क्रिकेटर खुल कर अपने देश का साथ देते हैं। यहां तक कि कश्मीर मुद्दे पर भी वो अपने देश पाकिस्तान का खुल कर पक्ष लेते हैं जबकि भारतीय खिलाड़ी ऐसे मुद्दों से दूर रहते हैं। न ही उनको ऐसे मुद्दों पर भारत का पक्ष लेते हुए देखा जाता है। वो बिल्कुल प्रोफेशनल है। उनको अमूमन क्रिकेट खेलते, विज्ञापन करते और अपनी लाइफ को इंजॉय करते देखा जाता है।

चौथा बिंदु यह है कि पाकिस्तान क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड अपने आप को देश से अलग स्वतंत्रत निकाय नहीं मानता हैं। जबकि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड अपने आप को एक स्वतंत्र और भारत सरकार से अलग निकाय मानता हैं। वो भारत सरकार से किसी भी तरह की दखलंदाजी पसंद नहीं करता है। उनका कहना हैं कि वो एक स्वतंत्र निकाय हैं और उनकी संपत्ति पर भारत सरकार तथा देश की जनता का कोई अधिकार नहीं हैं।

अब आप समझ गए होंगे कि जब BCCI खुद को भारत सरकार से अलग एक स्वतंत्र निकाय मानता हैं तो उनके खिलाड़ी देश के लिए गंभीरता से कैसे खेल पाएंगे?

मज़े की बात देखिए भारतीय टीम को हजारों किलोमीटर दूर अमेरिका में ‘श्वेत-अश्वेतों” के बीच होने वाले भेद-भाव तो नज़र आता है।लेकिन कश्मीर और बंग्लादेश में हाल ही में हुए सांप्रदायिक दंगों में मारें गए हिन्दुओं के परिवारों की पीड़ा उनको नज़र नहीं आती। अमेरिका के लिए मैच शुरू होने से पहले प्रतिकात्मक रूप से श्वेत अश्वेत के विरोध में आधे झुक जातें हैं लेकिन वो कश्मीर और बंग्लादेश में मारें गए लोगों के लिए मैच शुरू होने से पहले प्रतिकात्मक रूप से विरोध करना जरूरी नहीं समझते हैं।

हिमता राम पटेल
शिक्षक और राजनीतिक विश्लेषक।

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नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की आराधना।

–By Kumar Harsh

हम सभी जानते है की दुर्गा पूजा भारत में सबसे लोकप्रिय पर्व है जो कि शक्ति की देवी माँ दुर्गा को समर्पित है।
इस अवसर पर मैं सभी देशवासियो को बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूँ।

माँ दुर्गा और मनुष्य में रिश्ता क्या है?
हमारे शास्त्रों में कहा गया है-
” कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ”
( दुर्गासप्तशती (देव्यापरध्क्षमानस्त्रोतम ) श्लोक 4 के 2 लाइन )
इसका अर्थ है कि पुत्र कुपत्र हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नही हो सकती है।
यही रिश्ता माँ जगदम्बे और एक मनुष्य में है।
दुर्गा पूजा महोत्सव 10 दिनों तक चलता है। इसमें माँ दुर्गा के 9 रूपों की पूजा की जाती है।
इसी पर श्री दुर्गासप्तशती में एक श्लोक है कि
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।
इसमें माँ के 9 रूपों का नाम अंकित है। ये सभी माँ के अलग अलग रूपों के कार्यों को समर्पित है।
दुर्गा पूजा महोत्सव भारत में सबसे ज्यादा लोकप्रिय पश्चिम बंगाल राज्य में है। क्योंकि बंगाल की इष्टदेवी माँ दुर्गा है।

(Image used for representational purpose only)

एक मानव के लिए इस त्योंहार का मतलब है, की असत्य पर सत्य के विजय का त्योहार। इसलिए दशहरा को विजयदशमी का त्योंहार कहा जाता है।

दुर्गा पूजा में कई जगह मेले, खेलकुद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है । इसमें घर के बच्चे, बुजुर्गों सहित सभी पूजा पाठ के साथ इन सभी आयोजनों का आंनद लेते है।

इस विषय पर में अपना व्यक्तिगत अनुभव भी साझा करना चाहता हूँ।

(Image used for representational purpose only)

मेरे घर के सभी लोग माँ की पूजा करने से पहले अलग अलग फूलों से माँ की पंडाल सजाते है। फिर माता को विराजमान कर उनकी पूजा करते है।

माँ दुर्गा जगतजननी को समर्पित ये त्योहार सभी के मन मे नई ऊर्जा का संचार करता है।
और दस वें दिन माँ को सम्मान और नम आंखों से विसर्जन कर उनकी विदाई करते है।
मैं पुनः सभी देशवासियो को दुर्गा पूजा की शुभकामनाएं देता हूँ।

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राजस्थान में नकल की “रीट”

–By Himata Ram Patel

भारत के लोग नकल करके पास क्यों होना चाहते? और रिश्वत के दम पर नौकरियां क्यों हासिल करना चाहते हैं? इसके पीछे एक ही कारण है कि लोग परिश्रम नहीं करना चाहते। यह हाल सभी जगह हैं। आलस अब एक राष्ट्रीय समस्या बन गई है। आखिर लोग परिश्रम क्यों नहीं करना चाहते?

वर्ष 2021 के ‘ग्लोबल इनोवेशन की इंडेक्स’ में भारत 132 देशों की सूची में 46 वें स्थान पर है। लेकिन नक़ल करने के मामलों में भारत के लोग नए नए इनोवेशन कर रहे हैं। नई नई टेक्नोलॉजी का उपयोग कर रहे हैं।

परीक्षाओं में नकल करवाने के लिए भारत के लोगों की नई खोज हैं “ब्लूटूथ वाली चप्पल”। भारत में नकल करवाने वाली इन चप्पल का पता तब चला, जब 26 सितंबर को राजस्थान में स्कूलों में अध्यापकों की भर्ती के लिए “रीट” की परीक्षा का आयोजन हुआ।

इस परीक्षा में अजमेर के एक परीक्षा केंद्र पर एक अभ्यर्थी ऐसी ब्लूटूथ वाली चप्पल पहन कर आया। इस 6 लाख की कीमत वालीं चच्पल के सोल में एक सिम कार्ड सहित पुरा का पुरा मोबाइल फोन लगा हुआ था। यह फ़ोन कान में लगे ब्लूटूथ से जुड़ा हुआ था। बाहर बैठा आदमी जो भी बोलता था इस अभ्यर्थी को ब्लूटूथ के द्वारा सब सुनाई दे रहा था।

ज़रा सोचिए हमारे देश के लोगों का दिमाग कितना चलता है? इतना दिमाग अगर इन लोगों ने पढ़ाई पर लगाया होता तो शायद ये इस परीक्षा को टाॅप कर जाते। लेकिन इन लोगों को पढ़ाई करनी नहीं थी, इसलिए पुरा दिमाग नक़ल करने में लगा दिया।

पुलिस को इसकी सूचना पहले से ही थी। इसलिए पुलिस ने जब इस अभ्यर्थी को परीक्षा केंद्र से गिरफ्तार किया तो पुरा एक नक़ल गिरोह सामने आ गया।

जिसने ब्लूटूथ का अविष्कार किया उसने भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन उनका यह ब्लूटूथ राजस्थान में नकल करने में काम आएंगा।

राजस्थान में शिक्षकों की भर्ती की परीक्षा वो लोग देते हैं जो भविष्य में शिक्षक बनना चाहते हैं और उन पर छात्रों को पुरी ईमानदारी से पढ़ाने की जिम्मेदारी है। इन शिक्षकों से यह उम्मीद की जाती हैं कि वो छात्रों को नक़ल करने से रोकेंगे। लेकिन क्या नकल से शिक्षक बनने वाले ऐसा कर पाएंगे? ये लोग “Teacher” बनने से पहले ही “Cheater” बन गए।

नकल एक गंभीर मुद्दा है लेकिन 26 सितंबर को राजस्थान की रीट परीक्षा में जो कुछ भी हुआ वो एक मज़ाक से कम नहीं था। वो उन छात्रों के साथ मज़ाक था जो ईमानदार से मेहनत करके परीक्षा देना चाहते हैं। वो उन माता-पिता के साथ भी मज़ाक था जो अपनी जमा-पूंजी लगा कर अपने बच्चों को पढ़ाते हैं।

नक़ल गिरोह में शिक्षकों, पुलिस, और अधिकारी सहित करीब चालीस लोग पकड़े गए। जिस शिक्षक पर निष्पक्ष परीक्षा करने की जिम्मेदारी थी वो भी इस नक़ल कराने में सम्मिलित हों गया। जिस पुलिस इंस्पेक्टर पर नक़ल रोकने की जिम्मेदारी थी वो नक़ल कराने में शामिल हों गया?

हमारे देश में नकल अब एक उद्योग बन गया है। कुछ लोग नक़ल करके पास होना चाहते हैं तो कुछ लोग ईमानदारी से मेहनत करके पास होना चाहते हैं। लेकिन कई बार ऐसे ईमानदार लोगों का भाग्य और सिस्टम साथ नहीं देता हैं। ऐसा ही एक वाकया सीकर में एक परीक्षा केंद्र पर एक महिला अभ्यर्थी के साथ हुआ। यह महिला उम्मीदवार परीक्षा केंद्र पर परीक्षा देने दस मिनट पहले ही पहुंच गई थी लेकिन वहां मौजूद गार्ड ने कहा कि दूसरे गेट पर इंट्री हों रही हैं। दूसरा गेट दूर था। दूसरे गेट पर वह पांच मिनट देरी से पहुंची। इसलिए उनको परीक्षा केंद्र में प्रवेश नहीं करने दिया। यह उम्मीदवार रोती रही और हाथ जोड़कर अंदर जाने के लिए गिड़गिड़ाती रहीं लेकिन उनको परीक्षा केंद्र में नहीं आने दिया गया।

यह महिला उम्मीदवार नक़ल नहीं करना चाहतीं। अपनी मेहनत से परीक्षा देना चाहती थी। परीक्षा केंद्र पर समय पर भी पहुंच गई लेकिन गलतफहमी में वो ग़लत गेट पर पहुंच गई।

जरा सोचिए हमारे देश में जो लोग ईमानदारी से पूरे वर्ष मेहनत करके परीक्षा देना चाहते हैं, उनके साथ क्या होता हैं ? और हमारे देश में कैसे पूरा का पूरा सिस्टम कामचोर छात्रों को नक़ल करवा कर पास करवाने में लगा रहता है? यह ही कामचोर छात्र आगे जाकर अध्यापक बनेंगे और अपने छात्रों को अपने जैसा बनाने की कोशिश करेंगे।

गलतफहमी की वजह से परीक्षा में वंचित रही इस लड़की के लिए हमारे मन में दुःख भी है और खेद भी। हम चाहते हैं कि राजस्थान के मुख्यमंत्री, राजस्थान की सरकार और जो लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं वो इस लड़की के बारे में जरूर सोचें।

भारत में लोग बेरोजगारी का रोना तो रो रहे हैं लेकिन असली वजह यह है कि बहुत सारे लोग रोजगार पाने के योग्य ही नहीं है।
एक अनुमान के अनुसार भारत में 53 फीसदी ग्रेजुएट, 80 फीसदी इंजीनियर्स और 46 फीसदी एमबीए स्टूडेंट्स नौकरी के काबिल ही नहीं है। उनके पास डिग्री तों हैं लेकिन स्कील नहीं है। ऐसे अयोग्य लोग रिश्वत के दम पर नौकरियों में आ जाते हैं। फिर ये लोग भ्रष्टाचार करते हैं और यह सिलसिला पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है।

कैसे पढ़ने वाले वाले छात्रों के साथ कभी कभी भाग्य और सिस्टम साथ नहीं देता? गलतफहमी की वजह से सीकर के एक परीक्षा केंद्र पर पांच मिनट देरी से पहुंची इस लड़की को परीक्षा केंद्र में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई और वह परीक्षा से वंचित रह गईं।
(विडियो सौजन्य- Zee News)

Originally tweeted by Himata Ram Patel (@himataram_patel) on Oct 2, 2021.

हिमता राम पटेल
शिक्षक एवं राजनीतिक विश्लेषक
@himataram_patel

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कैप्टन को आउट करने के चक्कर में खुद हिट-विकेट हुए सिद्धु!

–By Subhash Chandra

राहुल गाँधी का एक “पप्पू” गया, लेकिन दूसरा पप्पू” आ गया। अब सिद्धू नई “माँ” तलाश करेंगा ठोको ताली।

कभी भाजपा को अपनी माँ कहता था । फिर उस माँ को छोड़ कर कांग्रेस को असली “माँ” बता दिया और सोनिया जी के चरण पकड़ लिए।

जिस राहुल गाँधी को “पप्पू” नाम दिया सिद्धू ने, आज उसका ही “पप्पू” बन गया। सिद्धू का फंडा बड़ा साफ़ था। भाजपा को कहा कि अकाली दल को छोड़ कर उसे मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करो, जब नहीं किया तो भाजपा छोड़ दी।

कांग्रेस ने भरोसा दिया कि वक्त आने पर उसे मुख्यमंत्री बनाएंगे मगर वक्त आने पर भी कांग्रेस ने उसे ठेंगा दिखा दिया।

मुख्यमंत्री बनने का ये समय लाने के लिए सिद्धू ने घोड़े खोल दिए और अमरिंदर को हटवा दिया। मगर मिला क्या,उसी के शब्दों में “बाबा जी का ठुल्लू”?

अब तीसरी माँ की तलाश में निकल पड़ेगा सिद्धू । अब लग ले जनरल बाजवा के गले और जादू की झप्पी डाल इमरान खान के साथ।

अगली उम्मीद सिद्धू की पूरी होगी”आप” में। मगर कल को वो भी उसे मुख्यमत्री प्रोजेक्ट करेंगे या केवल मूर्ख ही बनाते हैं, देखना होगा।

भाजपा को छोड़ कर सिद्धू को ही नहीं, किसी को भी शांति नहीं मिली और ये बात अंदर ही अंदर सब जानते हैं। चाहे वो शत्रुघ्न सिन्हा हो, यशवंत सिन्हा हो या फिर कीर्ति आज़ाद, अरुन शौरी और उद्धव हो।

मगर आज कांग्रेस ने एक बहुत बड़ी कमाई की है जिसके लिए उसे बधाई देनी बनती है। आज कांग्रेस में देश के टुकड़े टुकड़े करने वाला कन्हैया कुमार आ गया।

कन्हैया कुमार CPI छोड़ कर आया है। जहां से अकसर कोई नेता निकल कर नहीं आते। ये आया है क्योंकि शायद ये कच्चा वामपंथी था। सुना है वहां अपने ऑफिस में लगा AC भी उतार कर ले आया है।

कन्हैया कुमार को राहुल गाँधी का “पप्पू” कहना ठीक होगा क्योंकि आते ही उसने कांग्रेस को कह दिया कि ये तो एक डूबता जहाज है जिसे डूबने से बचाना होगा तभी कश्तियाँ बचेंगी।

अभी तो खुद ही कश्ती बन कर कांग्रेस के डूबते जहाज में सवार हुआ है और आते ही पनौती बन गया जो एक ही दिन में पंजाब में पार्टी बिखर गई।

अब राहुल गाँधी, कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी के बाद किसी तरह स्वरा भास्कर को भी पार्टी में ले आएं तो कांग्रेस की अच्छी तरह “पार्टी” हो जाये।

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तालिबान: मुल्ला बरादर गुट और हक्कानी नेटवर्क के बीच दरार!

–By Shubhangi Dorbi

मुल्ला बरादर और हक्कानी नेटवर्क तालिबान के नेतृत्व में एक चर्चा का विषय बन रहे है, लेकिन क्यों? आखिर वह क्या वजह है कि तालिबान में दरार पड़ने लगी है?

15 अगस्त को काबुल पर कब्जा करने के बाद तालिबान 3 सितंबर को अफगानिस्तान में सरकार बनाने की घोषणा करने वाला था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ, इस घोषणा को शनिवार 7 सितंबर तक टाल दिया गया। हालाँकि तालिबान ने इस पर कोई बयान जारी नहीं किया, लेकिन अफगानिस्तान के एक स्थानीय मीडिया हाउस ने दावा किया कि सत्ता के बँटवारे को लेकर तालिबान समुह में मतभेदों के कारण सरकार के गठन में देरी हुई है।
कुछ ख़बरों के अनुसार हक्कानी नेटवर्क(तालिबान का उप-समुह) और तालिबान के बीच हुए संघर्षों में मुल्ला बरादर, जो कि अफगान शासन का नेतृत्व करने को तैयार था, घायल हो गया। वहीं कुछ ख़बरों के अनुसार मुल्ला बरादर और हक्कानी नेटवर्क से संबंधित नेता खलील-उर-रहमानी के बीच कहा-सुनी हुई तथा इनके समर्थकों के बीच हाथापाई हुई। ख़बरों के अनुसार हाथापाई के बीच गोलियाँ भी चली, इस से नाराज होकर मुल्ला बरादर तालिबान के जन्मस्थान कंधार चले गए।
कुछ ख़बरों के अनुसार तो मुल्ला बरादर इस झड़प के बीच घायल हुए थे, लेकिन मुल्ला बरादर के बहुत दिनों तक मीडिया में ना आने के बाद कुछ मीडिया हाउसों ने उनकी मृत्यु का दावा भी किया था, हालाँकि इन सभी ख़बरों को खारिज करते हुए तालिबान ने मुल्ला बरादर की एक ऑडियो क्लिप जारी की थी और उनके सुरक्षित होने का दावा किया था।

मुल्ला बरादर कौन है?
अब्दुल गनी बरादर/मुल्ला बरादर अफगानिस्तान का एक राजनीतिक और धार्मिक नेता है और वर्तमान में अफगानिस्तान के उप-प्रधानमंत्री के रूप में नयी सरकार में कार्यभार सम्भाल रहे है। यह तालिबान के सह-संस्थापक भी है।
2010 में मुल्ला बरादर को पाकिस्तान ने कैद कर लिया था, सम्भवतः इसलिए क्योंकि वह गुप्त रूप से अफगान सरकार के साथ शांति समझौते पर पाकिस्तान की भागीदारी के बिना चर्चा कर रहे थे। अमेरिका के अनुरोध पर 2018 में इन्हें रिहा किया गया था।
ये कतर की राजधानी दोहा में तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख भी थे, तथा अमेरिका से कूटनीतिक संबंधो पर चर्चा कर रहे थे।

Mullah Baradar – Image used for the representational purpose only.

सिराजुद्दीन हक्कानी कौन है?
सिराजुद्दीन हक्कानी, हक्कानी नेटवर्क का सरगना और वर्तमान में अफगानिस्तान के आंतरिक मंत्री है। इन्होंने अपना बचपन मिरमशाह, उत्तरी वजीरिस्तान पाकिस्तान में बिताया है।
हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की प्राॅक्सी के रूप में भी देखा जाता है।

Sirajuddin Haqquani – Image used for representational purpose only.

तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के बीच मतभेदों के कुछ कारण:-

तालिबान नेतृत्व का मानना है कि कूटनीति के कारण उन्होंने अमेरिका पर जीत हासिल की है, वही हक्कानी नेटवर्क का मानना है कि उन्होंने युद्ध के जरिए अमेरिका को हराकर अफगानिस्तान पर जीत हासिल की है।

तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के विचार पंजशीर को लेकर भी अलग है।

पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई प्रमुख फैज हमीद के काबुल दौरे के बाद अंतरिम सरकार में कतर गुट को एक प्रकार से दरकिनार कर दिया गया है। यह भी मुल्ला बरादर के नाराज होने का कारण हो सकता है। हक्कानी नेटवर्क की मदद से पाकिस्तान ने परोक्ष रूप से अफगानिस्तान में अपनी सरकार बनाकर लगभग सभी महत्वपूर्ण विभागों पर कब्जा कर लिया है।

फैज हमीद का अफगानिस्तान दौरा।
शनिवार 4 सितंबर 2021 को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख जनरल फैज हमीद काबुल पहुँचे, ख़बरों के अनुसार तालिबान ने उन्हें वहाँ आमंत्रित किया था। हालाँकि एयरपोर्ट पर इंटरनेशनल मीडिया द्वारा सवाल पूछे जाने पर उन्होंने अपने काबुल आने का कारण नहीं बताया, बल्कि उन्होंने जो बोला उसे सुनकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उन्हें खुद नहीं मालूम वो वहाँ क्यों आए है। लेकिन टोलों न्यूज रिपोर्ट के अनुसार वह अपनी यात्रा के दौरान अफगानिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री गुलबुद्दीन हिकमतयार से मिले और सूत्रों के अनुसार चर्चा का विषय अफगानिस्तान में गठबंधन सरकार बनाना था।

Faiz Hameed – Image used for representational purpose only.

16 सितंबर को इन सभी घटनाओ के बाद मुल्ला बरादर पहली बार मीडिया के सामने आए और अफगानिस्तान के एक स्थानीय न्यूज चैनल के साथ एक साक्षात्कार किया। उसमें उन्होंने खुद के सुरक्षित होने का दावा किया लेकिन जारी किए गए वीडियो में इंटरव्यूर घबराया हुआ लग रहा था, मुल्ला बरादर एक कागज के टुकड़े से पढ़कर उत्तर दे रहे थे, तथा उनके साथ में एक आदमी हाथ में राइफल लिए खड़ा था, इसको देखते हुए यह भी कहा जा सकता है कि उन्होंने यह बयान किसी दबाव में दिया हो।

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तालिबान अपने अंदर चल रहे कलह को छिपाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यह साफ है कि तालिबान में दो गुट बन चुके है, एक पाकिस्तान समर्थक(हक्कानी नेटवर्क) तथा दूसरा अफगानिस्तान/तालिबान समर्थक। वही इनके बीच दूसरे मतभेद भी हो सकते है, जैसे मुल्ला बरादर सभी देशों से कूटनीतिक संबंध चाहते है वही हक्कानी ऐसा नहीं चाहते, या सत्ता को लेकर आगे भी इन दो गुटों में मतभेद हो सकते है।

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तालिबान के आने से पाकिस्तान को नफा या नुकसान?

–By Shubhangi Dorbi

कुछ समय से भारत में पाकिस्तान एक चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बार ऐसा कश्मीर की वजह से नहीं बल्कि अफगानिस्तान की वजह से है। काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि तालिबान ने गुलामी की जंजीरें तोड़ दी है।

पाकिस्तान के इनटिरीयॅर मिनिस्टर शेख राशिद ने एक साक्षात्कार(इंटरव्यू) में कहा कि तालिबान के सभी शीर्ष नेता पाकिस्तान में पैदा हुए और पले-बढ़े। यह हमारी ‘सेवा’ रही है कि हमनें उन्हें परीक्षित किया और कई और अभी अध्ययन कर रहे होंगे।

पाकिस्तान की बात करते समय एक ध्यान देने वाली बात यह है कि पाकिस्तानी सरकार और पाकिस्तानी सेना प्रतिस्पर्धी हितों वाले समुह है कोई अखंड संस्थान नहीं, और यह ज्यादातर तालिबान के पक्ष में ही रहते है। पाकिस्तान ने ही मध्यस्थता कर अमेरिका और तालिबान की बात करायी थी। यहाँ तक कि पाकिस्तान विश्व के दूसरे राष्ट्रों से यह चाहता है कि वे तालिबान को मान्यता प्रदान करे।

पकिस्तान का तालिबान को समर्थन करने के कुछ कारण है जैसे:-पाकिस्तान और तालिबान की विचारधारा एक ही है, इस्लाम ने दोनों को जोड़ा हुआ है।

पाकिस्तान में लगभग 25% पश्तून आबादी रहती है। बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के पश्चिमी क्षेत्रों में बड़ी पश्तून आबादी रहती है। इन क्षेत्रों में पाकिस्तान ने मदरसों की स्थापना कर इस्लामी राष्ट्रवाद से पश्तून राष्ट्रवाद को दबाने की कोशिश की है। कुछ तालिबानी भी इन्हीं मदरसों से प्रशिक्षित है, अर्थात अफ़ग़ान तालिबान में भी एक समुह है जो पाकिस्तान के साथ है।

कश्मीर के मुद्दे को लेकर पाकिस्तान तालिबान सरकार से मदद चाहता है। अफगानिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री अशरफ गनी की सरकार के भारत के साथ संबंध अच्छे थे। पाकिस्तान ने भारत पर यह आरोप लगाया था कि भारत अफगानिस्तान से पाकिस्तान को अस्थिर करने और तोड़ने का प्रयास कर रहा है, इस समस्या को कम करने के लिए पूर्व अफगानिस्तान सरकार ने कुछ नहीं किया।

तालिबान से मित्रता बढ़ाने का एक कारण यह भी हो सकता है कि भारत विरोधी जिहादी समुहों को पनाह व हथियार आदि प्रदान करें और भारत का मुकाबला करने में पाकिस्तान की मदद करे।

पाकिस्तान के तालिबान को समर्थन देने के पीछे की एक वजह डूरंड रेखा भी है, उनका मानना है कि तालिबान सरकार उसे मान्यता देकर उनकी चिंताओं को कम कर सकती है।

क्या पाकिस्तान का तालिबान को समर्थन देना पाकिस्तान के लिए अच्छा है? नहीं, तालिबान की वापसी पाकिस्तान के लिए अच्छी नहीं है, इसके कुछ कारण है।

तालिबान सरकार भी डूरंड रेखा को नहीं मानती। डूरंड रेखा पाकिस्तानी पश्तून प्रभुत्व वाले क्षेत्रों को अफगानिस्तान से अलग करती है, और तालिबानियों के अनुसार ये रेखा दो भाइयों को अलग करती है।

अफगानिस्तान से जो लोग देश छोड़कर भाग रहे है उनमें से अधिकतर लोग शरणार्थी के रूप में पाकिस्तान जाएंगे, क्योंकि पाकिस्तान में अच्छी-खासी पश्तून आबादी है, तो उन्हें घुलने-मिलने में आसानी होगी और पाकिस्तान के बॉर्डर भी अफगानिस्तान से मिलता है। हालाँकि पाकिस्तान ने पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर पर फेसिंग लगायी है। वर्तमान में पाकिस्तान में 1.4 मिलियन पंजीकृत और 1.5 मिलियन अपंजीकृत अफ़ग़ान शरणार्थी है। ऐसे में पाकिस्तान जैसे देश जिसकी अर्थव्यवस्था डूब चुकी है, जिसके सार्वजानिक बुनियादी ढाँचे ठीक नहीं है, जिसके पार्क, एयरपोर्ट आदि चीन के पास गिरवी है और शरणार्थी झेल नहीं पाएगा।

पाकिस्तान पहले अफ़ग़ान संकट के दौरान, शरणार्थी संकट, ड्रग और कालिश्नकोव कल्चर झेल चुका है, और वह फिर वही गलती कर रहा है।

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान(टीटीपी) या पाकिस्तानी तालिबान जो कि एक पश्तून इस्लामी आतंकवादी समुह है, जिसने पाकिस्तान में कई बम-धमाके करवाये है जिसमें पाकिस्तान के बेगुनाह लोगों की जान गयी थी। पाकिस्तान अफ़ग़ान तालिबान और टीटीपी को अलग-अलग मानता है, लेकिन दोनों की विचारधारा और मकसद लगभग एक ही है।

पाकिस्तान टीटीपी को अपना दुश्मन मानता है वही अफ़ग़ान तालिबान ने काबुल पर कब्जा करते ही टीटीपी के बहुत आतंकवादियों को जेल से रिहा कर दिया। 15 अगस्त 2021 के बाद से ही पाकिस्तान में अब तक कई बम धमाके हो चुके है, जिनमें टीटीपी का हाथ है। हाल ही में मिली खबरों के अनुसार टीटीपी ने पाकिस्तान के कुछ प्रसिद्ध पत्रकारों की लिस्ट जारी कर उन्हें धमकाया है कि वह टीटीपी को एक आतंकवादी समुह ना बोले। टीटीपी पाकिस्तान के लिए एक संकट साबित हो रहीं है, और पाकिस्तान की शांति को बिगाड़ने और देश में आतंकवाद को बढ़ाने का कार्य कर रहीं है।

तालिबान का उदय पाकिस्तान के लिए एक अच्छी खबर नहीं है, अभी चाहे पाकिस्तान कितनी ही खुशियाँ मना ले, लेकिन धीरे-धीरे उसे यह अहसास होगा और शायद तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।

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अफगानिस्तान के मुसलमानों की तरह कोई भी मुस्लिम देश भारत के मुसलमानों को नहीं अपनाएंगा।

–By Subhash Chandra

भारत का हिन्दू संकट में होगा, तो भारत ही आएगा। जो तालिबान के गीत गा रहे हैं, उन्हें भी भारत ही स्वीकार करेगा।

एक बार अमेरिका में भारतीय समुदाय के सामने भाषण करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था।

जिस देश में दुनियां भर के लोग आ कर रहते हैं, उस देश का नाम है अमेरिका और जिस देश के लोग दुनियां के हर देश में जा कर रहते हैं, वो देश हैं भारत।

दुनियां भर में ईसाई समुदाय और मुसलमानों के अनेक देश हैं मगर हिन्दुओं का कोई देश नहीं हैं।

इसलिए भारत के हिन्दू किसी भी देश में होंगे, वो संकट के समय में शरण के लिए भारत ही आएंगे ।उन्हें कोई देश शरण नहीं देगा।

हिन्दू का मतलब केवल हिन्दू ही नहीं है, उसमें भारत के सभी लोग शामिल हैं चाहे वो सिख़ हों,ईसाई, बौद्ध, पारसी, जैन या फिर मुसलमान ही क्यों ना हों।

शरण देने की बात तो दूर, कोई देश उनकी रक्षा भीं नहीं करेगा। हाल ही में देख लीजिये कि कुछ खालिस्तानी किसान आंदोलन में बैठ कर इमरान को भाई और मोदी को दुश्मन बता रहे थे।

लेकिन वो खालिस्तानी और उनके SFJ जैसे संगठन अफगानिस्तान से सिक्खों को बचा कर लाना तो दूर, गुरूद्वारे से ग्रन्थ साहब भी नहीं ला सके।उन्हें लाया कौन, जिसे वे दुश्मन कह रहे थे।

जावेद अख्तर, अरफ़ा खानुम, महबूबा मुफ़्ती, फारूखअब्दुल्ला, कांग्रेसी इरफ़ान अंसारी, ओवैसी, शफीकुर्रहमान बर्क और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मौलाना सज्जाद नोमानी जैसे अनेक मुसलमान भी जो तालिबान के साथ खड़े हैं, वो भी कल किसी मुसीबत में होंगे तो भारत ही लौट कर आएंगे।

भारत के ये ऐसे मुसलमान हैं जो मुसलमानों को भड़काने में लगे रहते हैं और भारत को छोड़ कर पाकिस्तान या किसी भी दूसरे देश के मुसलमानों के गीत गाते हैं यदि वो भारत के खिलाफ हो।

जबकि सच ये है कि सऊदी अरब जो मुसलमानों का ओरिजिनल देश कहा जाता है, वो भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों को दोयम दर्जे के मुसलमान समझता है।

भारत के अधिकांश मुसलमान हमेशा ओवैसी जैसों के कहने में देश के खिलाफ रह कर पाकिस्तान के साथ खड़े रहते हैं और आज तालिबान के साथ हो लिए,उन्हें ये नहीं पता कि उनका पाकिस्तान भी साथ नहीं देने वाला।

पाकिस्तान ने क्या, किसी इस्लामिक देश ने अफगानिस्तान के लोगों को शरण देने के लिए हां नहीं की। यह केवल भारत है, जहां अपने हर हिन्दू को उसके दिल में जगह मिल सकती है।

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आजादी की लड़ाई में नेहरू का कोई योगदान है?

–By Subhash Chandra

राहुल गाँधी ने ठीक ही कहा है कि, नेहरू जी को क्या दिल से निकाल सकते हो ? वो तो देश के दिल में शूल बन कर आर पार हो गए उनको कैसे भुलाया जायेगा?

ICHR ने “आज़ादी के अमृत महोत्सव” के लिए पहला पोस्टर जारी किया है जिसमे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े 8 लोगों के फोटो डाले गए हैं। इनमे जवाहरलाल नेहरू को जगह नहीं मिली।

ICHR ने ठीक ही कहा है कि ये केवल एक ही पोस्टर नहीं है जो जारी हुआ है, अभी और भी आएंगे, उसमें नेहरू जी दिखाई
देंगे।

आज के पोस्टर में, ये 8 नाम है, जिनकी फोटो छपी हैं- महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस, राजेंद्र प्रसाद, सरदार पटेल, अंबेडकर, मदनमोहन मालवीय, वीर सावरकर और भगत सिंह।

नेहरू की फोटो ना होने पर क्लेश कर दिया कांग्रेस के नेताओ और लिब्रान्डु पत्रकारों ने। किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ। राहुल गाँधी ने बहुत सही पूछा है कि नेहरू जी को क्या दिल से निकाल सकते हो?

कांग्रेस क्यों बिलबिला रही है? जबकि सच यह है कि उसने गाँधी नेहरू के अलावा हर किसी को आज़ादी के इतिहास के पन्नों से गायब करा दिया। नेहरू ने तो सुभाष चंद्र बोस को रूस के हाथों युद्धबंदी बना कर गिरफ्तार करने का षड़यंत्र रचा था।

कांग्रेस को तकलीफ ये है कि नेहरू का फोटो तो लगा नहीं, लेकिन वीर सावरकर का लगा दिया।

नेहरू को हम कैसे दिल से निकाल सकते हैं जिसने खुद देश के टुकड़े करने का अपराध किया था। ये बात नेहरू ने खुद स्वीकार की थी। नेहरू तो शूल बन कर देश के दिल को चीर गए, वो कैसे देश के घायल दिल से निकलेगा।

नेहरू एक “सिलेक्टेड” प्रधानमंत्री थे, “इलेक्टेड” नहीं। कांग्रेस ने तो सरदार पटेल का चयन किया था मगर वो एडविना माउंटबेटन और गाँधी के आशीर्वाद से “सेलेक्ट” हो गए।

नेहरू खुद तो शूल बन कर धंस गए भारतमाता के दिल में, उसके अलावा कितने ही शूल नेहरू ने भारत माता के हृदय में घोंप दिए।

कुछ ऐसे शूल बता रहा हूँ नेहरू ने एक तिहाई कश्मीर दे दिया पाकिस्तान को और मसला ले गया UN में और 370 दे दी जम्मू कश्मीर को; चीन को भेट कर दिया 40,000 वर्ग किलोमीटर भूभाग अक्साई चिन समेत; चीन को दी दी UNSC सीट वीटो के साथ इंडस वाटर ट्रीटी से पाकिस्तान को फायदा दिया; बलोचिस्तान को स्वीकार नहीं किया और ना नेपाल को; सोमनाथ मंदिर बनाने से मना कर दिया और खुद को भारत रत्न दे दिया; फलीस्तीन के लिए एकतरफा नीति बनाई।

हिन्दू कोड बिल बना का हिन्दुओं के सभी नियम कानून ख़त्म कर दिए। क्योंकि नेहरू खुद को “हिन्दू” ही नहीं मानता थे।

कांग्रेस चाहती है ऐसे शूल को देश दिल में बिठा कर रखे और आज तो जनमानस के हृदय में जगह बना कर बैठे है मोदी, उसके खिलाफ कांग्रेस जनता को भड़का रही है।

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