–By Shubhangi Dorbi
कुछ समय से भारत में पाकिस्तान एक चर्चा का विषय बना हुआ है। इस बार ऐसा कश्मीर की वजह से नहीं बल्कि अफगानिस्तान की वजह से है। काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि तालिबान ने गुलामी की जंजीरें तोड़ दी है।
पाकिस्तान के इनटिरीयॅर मिनिस्टर शेख राशिद ने एक साक्षात्कार(इंटरव्यू) में कहा कि तालिबान के सभी शीर्ष नेता पाकिस्तान में पैदा हुए और पले-बढ़े। यह हमारी ‘सेवा’ रही है कि हमनें उन्हें परीक्षित किया और कई और अभी अध्ययन कर रहे होंगे।
पाकिस्तान की बात करते समय एक ध्यान देने वाली बात यह है कि पाकिस्तानी सरकार और पाकिस्तानी सेना प्रतिस्पर्धी हितों वाले समुह है कोई अखंड संस्थान नहीं, और यह ज्यादातर तालिबान के पक्ष में ही रहते है। पाकिस्तान ने ही मध्यस्थता कर अमेरिका और तालिबान की बात करायी थी। यहाँ तक कि पाकिस्तान विश्व के दूसरे राष्ट्रों से यह चाहता है कि वे तालिबान को मान्यता प्रदान करे।
पकिस्तान का तालिबान को समर्थन करने के कुछ कारण है जैसे:-पाकिस्तान और तालिबान की विचारधारा एक ही है, इस्लाम ने दोनों को जोड़ा हुआ है।
पाकिस्तान में लगभग 25% पश्तून आबादी रहती है। बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा के पश्चिमी क्षेत्रों में बड़ी पश्तून आबादी रहती है। इन क्षेत्रों में पाकिस्तान ने मदरसों की स्थापना कर इस्लामी राष्ट्रवाद से पश्तून राष्ट्रवाद को दबाने की कोशिश की है। कुछ तालिबानी भी इन्हीं मदरसों से प्रशिक्षित है, अर्थात अफ़ग़ान तालिबान में भी एक समुह है जो पाकिस्तान के साथ है।
कश्मीर के मुद्दे को लेकर पाकिस्तान तालिबान सरकार से मदद चाहता है। अफगानिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री अशरफ गनी की सरकार के भारत के साथ संबंध अच्छे थे। पाकिस्तान ने भारत पर यह आरोप लगाया था कि भारत अफगानिस्तान से पाकिस्तान को अस्थिर करने और तोड़ने का प्रयास कर रहा है, इस समस्या को कम करने के लिए पूर्व अफगानिस्तान सरकार ने कुछ नहीं किया।
तालिबान से मित्रता बढ़ाने का एक कारण यह भी हो सकता है कि भारत विरोधी जिहादी समुहों को पनाह व हथियार आदि प्रदान करें और भारत का मुकाबला करने में पाकिस्तान की मदद करे।
पाकिस्तान के तालिबान को समर्थन देने के पीछे की एक वजह डूरंड रेखा भी है, उनका मानना है कि तालिबान सरकार उसे मान्यता देकर उनकी चिंताओं को कम कर सकती है।
क्या पाकिस्तान का तालिबान को समर्थन देना पाकिस्तान के लिए अच्छा है? नहीं, तालिबान की वापसी पाकिस्तान के लिए अच्छी नहीं है, इसके कुछ कारण है।
तालिबान सरकार भी डूरंड रेखा को नहीं मानती। डूरंड रेखा पाकिस्तानी पश्तून प्रभुत्व वाले क्षेत्रों को अफगानिस्तान से अलग करती है, और तालिबानियों के अनुसार ये रेखा दो भाइयों को अलग करती है।
अफगानिस्तान से जो लोग देश छोड़कर भाग रहे है उनमें से अधिकतर लोग शरणार्थी के रूप में पाकिस्तान जाएंगे, क्योंकि पाकिस्तान में अच्छी-खासी पश्तून आबादी है, तो उन्हें घुलने-मिलने में आसानी होगी और पाकिस्तान के बॉर्डर भी अफगानिस्तान से मिलता है। हालाँकि पाकिस्तान ने पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर पर फेसिंग लगायी है। वर्तमान में पाकिस्तान में 1.4 मिलियन पंजीकृत और 1.5 मिलियन अपंजीकृत अफ़ग़ान शरणार्थी है। ऐसे में पाकिस्तान जैसे देश जिसकी अर्थव्यवस्था डूब चुकी है, जिसके सार्वजानिक बुनियादी ढाँचे ठीक नहीं है, जिसके पार्क, एयरपोर्ट आदि चीन के पास गिरवी है और शरणार्थी झेल नहीं पाएगा।
पाकिस्तान पहले अफ़ग़ान संकट के दौरान, शरणार्थी संकट, ड्रग और कालिश्नकोव कल्चर झेल चुका है, और वह फिर वही गलती कर रहा है।
तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान(टीटीपी) या पाकिस्तानी तालिबान जो कि एक पश्तून इस्लामी आतंकवादी समुह है, जिसने पाकिस्तान में कई बम-धमाके करवाये है जिसमें पाकिस्तान के बेगुनाह लोगों की जान गयी थी। पाकिस्तान अफ़ग़ान तालिबान और टीटीपी को अलग-अलग मानता है, लेकिन दोनों की विचारधारा और मकसद लगभग एक ही है।
पाकिस्तान टीटीपी को अपना दुश्मन मानता है वही अफ़ग़ान तालिबान ने काबुल पर कब्जा करते ही टीटीपी के बहुत आतंकवादियों को जेल से रिहा कर दिया। 15 अगस्त 2021 के बाद से ही पाकिस्तान में अब तक कई बम धमाके हो चुके है, जिनमें टीटीपी का हाथ है। हाल ही में मिली खबरों के अनुसार टीटीपी ने पाकिस्तान के कुछ प्रसिद्ध पत्रकारों की लिस्ट जारी कर उन्हें धमकाया है कि वह टीटीपी को एक आतंकवादी समुह ना बोले। टीटीपी पाकिस्तान के लिए एक संकट साबित हो रहीं है, और पाकिस्तान की शांति को बिगाड़ने और देश में आतंकवाद को बढ़ाने का कार्य कर रहीं है।
तालिबान का उदय पाकिस्तान के लिए एक अच्छी खबर नहीं है, अभी चाहे पाकिस्तान कितनी ही खुशियाँ मना ले, लेकिन धीरे-धीरे उसे यह अहसास होगा और शायद तब तक बहुत देर हो चुकी होगी।
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