कोलकाता हाईकोर्ट के आदेशों की ममता सरकार कर रही अवमानना ।

— Subhash Chandra

कोलकाता हाई कोर्ट की गलती,
ममता प्रशाशन पर भरोसा क्यों किया –
हिंसा के लिए CBI जांच के आदेश दिए,
मगर अभी न्याय नहीं हुआ ।

कोलकाता हाई कोर्ट ने अपने 20 अगस्त
के आदेश में चुनाव के बाद हुई हिंसा के
लिए जांच CBI को करने के आदेश दिए –
और 6 हफ्ते में जांच पूरी करने को कहा ।

इसके पहले NHRC ने भी पूरी तरह जाँच
की थी जिसमे ममता सरकार पर ना केवल
गंभीर आरोप लगाए गए थे बल्कि उनकी
टीम पर हमले भी किये गए थे ।

अदालत ने हिंसा से जुड़े अन्य मामलों की
जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) का
भी गठन किया –लूट, आगजनी, तोड़फोड़
और हमले जैसे मामलों की जांच SIT को
देने के आदेश दिए ।

SIT में हाई कोर्ट ने शामिल किये —
1) कोलकाता पुलिस आयुक्त सोमेन मित्रा;
2) बंगाल पुलिस में डी जी (दूरसंचार)
सुमन बाला साहू; और
3) रणवीर कुमार, IPS Officer

ये भी आदेश दिया गया कि SIT जांच की
निगरानी सुप्रीम कोर्ट से अवकाश प्राप्त
एक न्यायाधीश करेंगे लेकिन उनका कोई
मनोनयन अभी तक शायद नहीं हुआ ।

SIT में शामिल सभी अधिकारी ममता के
प्रशाशन में काम कर रहे हैं और इसलिए
हाई कोर्ट को ये मान कर चलना चाहिए
था कि SIT जांच करेगी ही नहीं ।

परसों हाई कोर्ट ने SIT गठित ना किये
जाने पर नाराजगी जताई है जब पीड़ित
लोगों ने बताया कि CBI ने तो काम
शुरू कर दिया है मगर SIT का अभी
तक कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं
हुआ है ।

ममता के अधिकारी भला कैसे अपनी
मालकिन के खिलाफ जांच कर सकते
हैं –ममता ने तो पुलिस कमिश्नर राजीव
कुमार को भी 2 साल से गिरफ्तार नहीं
होने दिया –उसके केस में तो सुप्रीम
कोर्ट ने ही ऐसे आदेश दिए थे कि उसे
बचने का मार्ग सुझा दिया था ।

मेहनत तो की है हाई कोर्ट ने लेकिन
अपेक्षित नतीजे नहीं आ सकते जब
तक ममता सरकार है –हाई कोर्ट
को 2 आदेश तुरंत देने चाहियें ।

1) बंगाल से विस्थापित हो कर असम
में रह रहे लोगों की वापसी के आदेश
दिए जाएं; और
2) जब तक जांच पूरी ना हो जाये,
विधान सभा और राज्य सरकार को
निलंबित रखा जाये ।

Views expressed are those of writers.

केरल में कोरोना विस्फोट।

-By Subhash Chandra


लुटियंस के लिबरल पत्रकार चुप क्यों हैं। केरला में मुस्लिम जिलों की कोई खबर नहीं हैं।

केरल में हो रहे कोरोना विस्फोट पर लुटियंस मीडिया के लिब्रान्डु खामोश क्यों हैं ? बरखा दत्त शमशानों में बैठ लाइव शो करती थी उसे अब केरल के कब्रिस्तानों में भी बैठ कर रिपोर्ट करनी चाहिए।

लिबरल मीडिया गंगा जी में बहती लाशों को दिखा कर हिन्दुओं को बदनाम कर अपनी TRP कमाने का जरिया बना कर खुश थे जबकि ये सभी वीडियो और फोटो कई साल पुराने थे।

जस्टिस नरीमन ने हालात देख कर भी ईद पर केरल सरकार द्वारा ढील पर कोई कार्यवाही नहीं की और निकल गए चुपचाप क्यूंकि उनमें दम नहीं था मुसलमानों के खिलाफ कुछ कहने का। जबकि हिन्दुओं की कांवड़ यात्रा रोकने के लिए बेचैन थे।

केरल में नए केस बढ़ते गए और पिछले 3 दिन में तो सभी सीमाएं पार हो गई :

25 अगस्त –कुल नए केस 46,164
केरल के नए केस 31,445 (68%);
26 अगस्त –कुल नए केस 46,658
केरल के नए केस 30,077 (65%);
27 अगस्त –कुल नए केस 46,759
केरल के नए केस 32,801 (70%)

आज केरल के एक मित्र ने बताया कि 70% मुस्लिम आबादी वाले मल्लापुरम जिले में रोज 4 से 5 हजार केस आ रहे हैं और इसी तरह अन्य कई मुस्लिम आबादी वाले जिलों में भी यह ही हाल हैं।

केरल में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी प्रतिशत वाले 6 जिले हैं :
1. Mallapuram—-70.24%
2. Kozhicode——39.24%
3. Kasargod——-37.24%
4. Kannur———-29.43%
5. Palakkad——-28.93%
6. Wayanad——-28.65%


लेकिन जिलेवार कोरोना की सूचना तो दूर मीडिया अक्सर केरल में मिल रहे नए कोरोना केस भी नहीं बता रहा है। ये तो 3 दिनों से विस्फोट ज्यादा बढ़ गया तो संख्या बताई गई है।

जब देश में कोरोना मरीजों की संख्या घट रही है तब केरल में ऐसा विस्फोट क्या कह रहा है कि कोरोना की तीसरी लहर इसी राज्य में आ गई है?

यहां भी (केरल में) क्या कोई चीन की शरारतें तो नहीं है जो वामपंथी राज्य में अपना काम आसानी से कर पा रहा हैं ।

DISCLAIMER: Views expressed are those of writers.

पाकिस्तान केवल आतंकवाद का ही साथ दे सकता हैं।

–By Subhash Chandra

56 इस्लामिक देशों के समूह ‘ओआईसी’ ने अभी तक तालिबान को समर्थन देने का फैसला नहीं किया लेकिन उसका एक सदस्य देश पाकिस्तान ही उन्हें समर्थन दे रहा है ।

इसी को ध्यान में रख कर पाकिस्तान को ओआईसी से निकाल देना चाहिए। वैसे भी पाकिस्तान की आए दिन इस संस्था में इज़्ज़त उतरती रहती है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का घर ही जब किराये पर चढ़ गया हो तो वो मुल्क तालिबान की आतंकवाद से ही मदद कर सकता है और उसने लश्कर के आतंकियों को तालिबान की मदद के लिए भेज भी दिए हैं।

इमरान खान ने कहा है, कि तालिबान ने पश्चिमी देशों की गुलामी की बेड़ियों को तोड़ दिया है। 20 साल से मौज कर ली अमेरिका के पैसे पर और अब “नमकहरामी” हो गए।

मगर पाकिस्तान के लिए तहरीके तालिबान पाकिस्तान (TTP) सिरदर्द बनता जा रहा है जिसे कंट्रोल में रखने के लिए इमरान ने तालिबान से फ़रियाद की है क्योंकि पाकिस्तान को उससे डर है।

पाकिस्तान में पहले ही उसके पाले पोसे आतंकी संगठन है। इनमें से कौन भस्मासुर बनेगा पाकिस्तान के लिए, ये समय ही बताएगा ।

कोई भी इस्लामिक देश अफगानिस्तान के लोगों को शरण नहीं देना चाहता। बांग्लादेश ने मना कर दिया। टर्की ने दीवार बनाना शुरू कर दिया और ग्रीस ने भी 40 किलोमीटर लम्बी दीवार बना दी।

इस्लामिक देश भी अफगानिस्तान के मुसलमानों को शरण नहीं देना चाहते। जो देश अपनी कौम के लोगों का ही दर्द नहीं समझना चाहते वो किसी ओर कौम के कैसे हो सकते हैं।

अफ़ग़ानिस्तान में 99% लोग शरिया का समर्थन करते हैं और तालिबान भी शरिया लागू कर रहा है, तो फिर क्यों भागने की जरूरत है । इसका मतलब साफ़ है तालिबान का शरिया बर्दाश्त नहीं है।

इराक में शरिया को 91%, पडोसी पाकिस्तान में 84 % और बांग्लादेश में 82% लोगों का समर्थन है मगर क्या कोई देश शांत है।

इतना ही नहीं भारत में 89% मुसलमानों को लगता है देश में धार्मिक आज़ादी है मगर फिर भी 74% शरिया चाहते हैं मगर शरियावाले पाकिस्तान नहीं जाना चाहते।

भारत के कुछ मुस्लिम समझ बैठे हैं कि जैसे तालिबान ने कब्ज़ा कर लिया अफगानिस्तान पर, वैसे ही उनके कुछ संगठन भारत पर कर लेंगे।

लेकिन उन्हें ये याद रखना चाहिए ये भारत है ना कि अफगानिस्तान और हमारी सेना अफगानिस्तान की सेना नहीं है।

उन्हें ये भी याद रखना चाहिए कि अब 1947 नहीं है, 2021 है और ना कांग्रेस सत्ता में है।

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राम मंदिर आंदोलन के महानायक कल्याण सिंह।

–By Rahul Singh

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह का शनिवार शाम को निधन हो गया। उन्होंने 89 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। कल्याण सिंह लंबे समय से बीमार चल रहे थे और लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। कल्याण सिंह का राजनीतिक सफर संघर्षपूर्ण रहा। अपने राजनीतिक जीवन में वे कई विवादों से भी घिरे रहे। कल्याण सिंह का जाना भारतीय राजनीति के लिए एक ऐसी क्षति है जिसकी भरपाई कभी नहीं हो सकती।

कल्याण सिंह ने राजनीति में अपनी एक अलग छवि बनाई जिससे कई लोगों को उनकी विचारधारा पसंद नहीं आती थी। लेकिन फिर भी उन्हें उनके विरोधी एक दिग्गज नेता के रूप में मानते थे। राम मंदिर आंदोलन में तो उनकी ऐसी सक्रियता रही कि उन्हें अपनी सीएम कुर्सी तक कुर्बान करनी पड़ गई थी। ऐसे में भविष्य में भी कल्याण सिंह के योगदानों को हमेशा याद रखेगा।

दरअसल 90 के दशक में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर था और इस आंदोलन के सूत्रधार कल्याण सिंह ही थे। उनकी बदौलत यह आंदोलन यूपी से निकला और देखते-देखते पूरे देश में बहुत तेजी से फैल गया। उन्होंने हिंदुत्व की अपनी छवि जनता के सामने रखी। इसके साथ ही उन्हे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी साथ मिला जिससे आंदोलन ने और जोर पकड़ लिया। बता दें कि कल्याण सिंह शुरू से आरएसएस के जुझारू कार्यकर्ता थे। इसका पूरा फायदा यूपी में भाजपा को मिला और 1991 में यूपी में भाजपा की सरकार बनी थी।

कल्याण सिंह के नेतृत्व में भाजपा के पास पहला मौका था जब यूपी में भाजपा ने इतने प्रचंड बहुमत से सरकार बनाई थी। जिस आंदोलन की बदौलत भाजपा ने यूपी में सत्ता पाई उसके सूत्रधार कल्याण सिंह ही थे, इसलिए मुख्यमंत्री के लिए कोई अन्य नेता दावेदार थे ही नहीं। उन्हें ही मुख्यमंत्री का ताज दिया गया। कल्याण सिंह के कार्यकाल में सबकुछ ठीक-ठाक चलता रहा। कल्याण सिंह के शासन में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर पहुंच रहा था। इसका नतीजा यह हुआ कि वर्ष 1992 में बाबरी विध्वंस हो गया।

ऐसी घटना जिसने भारत की राजनीति को एक अलग ही दिशा दे दी। इसके बाद केंद्र से लेकर UP की सरकार की जड़ें हिल गईं। कल्याण सिंह ने इसकी नैतिक जिम्मेदारी ली और 6 दिसंबर 1992 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस्तीफे के बाद उनका कद और सुदृढ़ और नामचीन हो गया। उनके प्रधानमंत्री तक बनाए जाने की चर्चा चलने लगी।

हर सनातनी को कल्याण सिंह पर गर्व है ,ये हिंदुस्तान उनके बलिदान को हमेशा याद रखेगा।

जय श्री राम।।

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भाई-बहन के खूबसूरत रिश्ते को समर्पित त्योहार रक्षाबंधन।

–By Sanjay Soni

रक्षाबंधन भाई बहनों के बीच मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन बहन अपने भाइयों को रक्षा-सूत्र बांधती हैं और भाई अपनी बहनों को जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देते हैं।

भारतीय संस्कृति के अनुसार रक्षाबन्धन का त्योहार श्रावण माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। यह त्योहार भाई-बहन को स्नेह की डोर में बांधता है। इस दिन बहन अपने भाई के मस्तक पर टीका लगाकर आरती उतारती हैं और भाई के जीवन की हर मनोकामना पूरी हो यही प्रार्थना करतीं हुई रक्षासूत्र (राखी) बांधती हैं। 

इस दिन भाई अपनी लाडली बहन से रक्षा-सूत्र बंधवाकर हर साल अपनी बहन की रक्षा करने का संकल्प लेता हैं और यथा शक्ति उपहार बहन को जरूर देता है।

महाभारत की कथा के अनुसार पांडवों के राज्याभिषेक के समय जब भगवान कृष्ण ने राजा शिशुपाल का वध किया, तब उनकी उंगली से खून बहने लगा। भगवान कृष्ण के हाथ से खून बहता देख द्रौपदी ने अपनी साड़ी को चीर कर उनका टुकड़ा उनकी उंगली पर बांध दिया। कहा जाता है कि यहीं से भगवान कृष्ण ने द्रोपदी को अपनी बहन मान लिया था। भगवान कृष्ण ने भी अपनी बहन की रक्षा के वादे को निभाते हुए चीर हरण के दौरान द्रौपदी की रक्षा की थी।

भाई बहन के इस पावन-त्योहार कि सभी को संजय सोनी कि ओर से दिल से बधाई।

भारत माता की जय।

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अफगानिस्तान के मुद्दे पर विपक्ष और तथाकथित बुद्धिजीवियो का दोगलापन।

–By Nand Kr Choudhary

दुनियाभर में सिर्फ एक ही मुद्दा आज-कल छाया हुआ है और वो है अफगानिस्तान। जहाँ पर कुछ समय पहले तक लोकतंत्र कायम था परंतु अब वहा तालिबान के आतंकियों के द्वारा बंदूक की नोंक पर वहाँ की सत्ता हथियाने का प्रयास किया जा रहा है। तालिबान का जबसे अफगानिस्तान पर कब्जा हुआ तबसे वहाँ अफरा तफरी और डर का माहौल है। वहाँ के लोग डर के साये मे जीने को मजबूर है। तालिबान के आने भर की आहट भर से लोग खौफज़दा है।

इतना सबकुछ होने के बाद भी हमारे देश के कुछ लोग जो फिलिस्तीन और गाज़ा के मुद्दे पर इज़राइल के खिलाफ जमकर बोल रहे थे। अब वही लोग तालिबान द्वारा किये जा रहे ज़ुल्म सितम पर बोलना तो दूर बल्कि बेशर्मी से तालिबान के समर्थन में खड़े हो गए है। ये लोग अब इसे “गुड तालिबान” की संज्ञा दे रहे हैं। समाजवादी पार्टी के एक सांसद ने तो खुलेआम तालिबान का समर्थन किया हैं। स्वरा भास्कर जैसे लोग ने तो तालिबान को भला बुरा कहने की बजाय “हिंदू धर्म” पर ही सवाल खड़े कर दिए। अब इससे अधिक और क्या दुर्भाग्यपूर्ण हो सकता है।

कहने को तो यह सब अफगानिस्तान में हुआ लेकिन इन सबके बाद एक बात जो पता चली वो यह कि हमारे देश के ही कुछ लोग तालिबान का समर्थन कर रहे हैं। ऐसे लोगो का कहना है कि तालिबान ने इस दफा खून खराबा नही किया है। जबकि यह सरासर झूठ है सोशल मीडिया पर तमाम ऐसे वीडियो चल रहे हैं जहाँ पर अफगानिस्तान के आम नागरिकों को गोलियों से भूना जा रहा है। महिलाओ के साथ भी ज्यादती की जा रही है तथा उनके मौलिक अधिकारों का खुले आम हनन हो रहा है। इतना सबकुछ होने के बावजूद भी कुछ लोगो ने अपनी आंखों पर काली पट्टी बांध ली है। ये ही लोग अब तालिबान को क्लीन चिट देने का काम कर रहे हैं।

कई लोग बोल रहे है कि इस बार का तालिबान पहले वाले तालिबान से अलग है। ये बात किसी को भी हजम नही हो रही हैं। क्योंकि ये लोग हमेशा की तरह हथियार के दम पर अफगानिस्तान पर काबिज़ होना चाहते है। सिर्फ इसलिए कि तालिबान प्रेस कॉन्फ्रेंस करने लगा और हम यह मान ले कि वो सुधर गया है। यह बात किसी के भी गले नही उतर रही हैं। यह कटु सत्य है कि हमारे देश के तथाकथित बुद्धिजीवी चाहते हैं कि तालिबान को मौका दिया जाए, जिसने सिर्फ और सिर्फ हमेशा हिंसा का सहारा लिया है। अब तालिबान ने धीरे धीरे ही सही अफगानिस्तान में अपना असली रंग दिखाना शुरू कर दिया है।

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अफगानिस्तान में तालिबान का आना भारत के लिए खतरे की घंटी?

–By Himata Ram Patel

अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा दुबारा कब्ज़ा करने से हमें चिंता क्यों करनी चाहिए? क्योंकि अगर आप भारत के किसी भी शहर या किसी भी कोने में रहते हैं और आप यह सोच रहे हैं कि अफ़ग़ानिस्तान के इस संकट से आपको क्या लेना-देना है? तो आपको भी अपनी यह जानकारी सुधार लेनी चाहिए।

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद अब तालिबानी आतंकवादी भारत के कश्मीर से मात्र 400 किलोमीटर दूरी पर है जितनी दूरी दिल्ली से शिमला की है, उतनी ही दूरी तालिबान और कश्मीर के बीच है। जैसे आप दिल्ली से शिमला जातें हैं, वैसे ही उतनी ही दूरी से तालिबानी आतंकी कश्मीर में कोहराम मचाने के लिए आ सकते हैं। यह भारत के लिए बहुत बुरी ख़बर है, क्योंकि इससे भारत के कश्मीर में तालिबान प्रायोजित आतंकवाद बढ़ सकता है।

तालिबान भारत के लिए क्यों खतरा है? इसको आप इस उदाहरण से भी समझ सकते हैं।1990 के दशक में जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा था उस समय जिहाद और इस्लाम के नाम पर तालिबान ने पाकिस्तान का साथ दिया था। भारत में कई आतंकवादी हमलों में तालिबान का हाथ रहा था।

आज़ से बीस साल पहले जब अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार थी तब तालिबान ने भारत के खिलाफ कई साजिशें रची थी। जिसमें 24 दिसंबर 1999 में हुई कंधार हाईजैक की आतंकवादी घटना सबसे बड़ी थी। इस आतंकवादी घटना में आतंकवादियों ने दिल्ली से काठमांडू जाने वाले “इंडियन एयरलाइंस” के विमान (आईसी 814) को बीच में हाईजैक कर उसे अफगानिस्तान के कंधार ले गए थे। इसके बदले में भारत को ‘अजहर महमूद’ सहित तीन आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा था।

उस समय तालिबान ने भारत की कोई मदद नहीं की थी बल्कि उसने पाकिस्तान के आतंकवादियों की पूरी मदद की थी। विमान हाईजैक करने वाले आतंकवादियों को जो चाहिए था, तालिबान ने वो, सब उनको दिया। कंधार में खड़े हमारे विमान को भी तालिबान ने अपने कब्जे में ले लिया था। बड़ी मुश्किल से हमारे यात्रियों को छुड़ाया गया था।

अब आप सोचिए, क्या ऐसी घटनाएं दुबारा नहीं हो सकती? क्या तालिबान ऐसी दुबारा कोशिश नहीं करेगा?

वर्ष 2001 में अफगानिस्तान के “बामियान” शहर में भगवान “बुद्ध” की प्राचीन और सबसे बड़ी प्रतिमा को तालिबानी आतंकवादियों ने बम से उड़ा दिया था। यानी अफगानिस्तान में तालिबान के फिर से शासन में आने से आपकों ऐसी घटनाएं दुबारा देखने को मिल सकती हैं।इसलिए आज़ हम सब को चिंतित होने की आवश्यकता है।

सबसे बड़ी बात यह है कि अब अफ़ग़ानिस्तान वापस “हिंदू विरोधी” और “भारत विरोधी” गतिविधियों का प्रमुख “केन्द्र” बन जाएगा। भारत के खिलाफ एक बार फिर बड़ी साज़िशें होने लगेगी। ध्यान देने योग्य बात यह है कि आज़ का तालिबान अब बीस साल पुराना तालिबान नहीं है। अब उसे चीन, पाकिस्तान, और कतर जैसे देशों का समर्थन प्राप्त है और अप्रत्यक्ष रूप से उसे ‘रूस” का भी समर्थन प्राप्त है इसलिए भारत को अफगानिस्तान में होने वाली हर घटना पर सतर्कता के साथ नजर रखनी चाहिए।

Himata Ram Patel
शिक्षक एवं राजनीतिक विश्लेषक

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भारत का 75वां स्वतंत्रता दिवस।

–By Sanjay Soni

नमस्कार मेरे देशवासियों,

मैं अपना एक विचार व्यक्त करता हूँ आप के समक्ष। आप अपना विचार रखने के लिए स्वतंत्र हैं ।

हम 15 अगस्त को आजादी का उत्सव बड़े जोर शोर से मनाते है। अच्छी बात है पुराने गम के माहौल से बाहर निकल कर हमें आने वाले भविष्य को बेहतर बनाने के लिए नया भारत बनाने की ओर अग्रसर होना हर भारतीय नागरिक का कर्तव्य है ।

मै 15 अगस्त के बारे में मेरे विचार रखने का छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ ।

15 अगस्त पर आजादी के साथ हमें भारत का बंटवारा भी मिला। मैं पाकिस्तान को पाकिस्तान नहीं कहता में उसे आज भी अखंड भारत का हिस्सा कहता हूँ ।

हम ना बटवारे का अफसोस मना सके ना एक-दूसरे का गम बाँट सके

ये कैसी आज़ादी मिली जो मेरे देश को लहू-लुहान कर गईं? इस देश के टुकड़े चाहने वाले कुछ कट्टरपंथी मजहबी नेताओं ने हिन्दू मुसलमान कि दीवार खड़ी कर दी और अलग देश कि मांग रखकर मेरी भारतमाता के टुकड़े टुकड़े कर दिए और इस बटवारे को स्वीकृति देने वालों को मैं कभी माफ नहीं कर सकता ।

मैं कातिलों का शिकवा नहीं करना चाहता। पर मैं कातिलों से महोब्बत नहीं करुँगा।

आज टूटे हुए सपनों की बहुत याद आई। आज बीते हुए सावन को बहुत याद किया।

15 अगस्त आजादी पर्व कि सभी भारतीयों को संजय सोनी कि ओर से दिल से बधाई ।

भारत माता की जय।

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नेहरु-जिन्ना की सत्ता लालसा से देश का विभाजन।

–By Subhash Chandra

वैसे तो भारत के कई टुकड़े विगत में हो कर स्वतंत्र देश बने थे मगर 1947 का विभाजन कुछ ऐसे था जैसे हस्तिनापुर का विभाजन।

फर्क इतना था कि इस बार पितामह थे गांधी। जिन्होंने अपने चहेतों की सत्ता लालसा के लिए भारत का विभाजन करा दिया। ये दो चहेते थें सत्तालोलुप शकुनि के रूप में नेहरू और जिन्ना।

महाभारत में शकुनि हस्तिनापुर को बर्बाद करने आया था मगर नेहरू तो ऐसे शकुनि थे जो सत्ता की भूख मिटाने के लिए देश को बर्बाद करने पर तुलें हुए थे।

दुर्योधन देश का विभाजन करके भी चैन से नहीं बैठा और इंद्रप्रस्थ हड़पने के चक्कर में रहा। छल से उसने हड़प भी लिया लेकिन अंत में पूरे वंश का नाश करा लिया ।

जिन्ना ने भी यही बीज बोए कि एक दिन कश्मीर और फिर भारत को हड़प लेगा। नेहरू ने एक तिहाई कश्मीर उसे दे भी दिया।

जैसे महाभारत के भीष्म पितामह को कौरव और पांडव दोनों प्रिय थे वैसे ही गाँधी को भी नेहरू और जिन्ना दोनों प्रिय थे। गाँधी विभाजन करके भी पाकिस्तान के साथ खड़े रहे और 75 करोड़ देने की जिद पर भी अड़े थे और इधर नेहरू के सिर हाथ रखे हुए थे।

गाँधी और नेहरू ने आज़ादी मिलने के पहले दिन से दूसरा विभाजन कर एक और पाकिस्तान बनाने के लिए तैयारी शुरू कर दी क्योंकि धर्म के आधार पर विभाजन करने के बाद भी मुसलमानों को उन्होंने भारत में रखा।

इन तीन नेताओं की राजनीति ने देश के टुकड़े कर जो नरसंहार कराया उसकी पीड़ा देश आज तक भुगत रहा है।कांग्रेस शकुनि नेहरू के दिखाए मार्ग पर चल रही है और देश तोड़ने पर आज भी आमादा है।

कांग्रेस पाकिस्तान के साथ हाथ में हाथ डाले देश को तोड़ने का प्रयास कर रही है, जिसके लिए अन्य दल भी उसके साथ खड़े हैं जो मुसलमानों को खुश करने के लिए हिन्दू बहुल कौम को ख़तम करने पर तुले हैं।

एक बात और ध्यान देने वाली है कि जब अंग्रेज भारत छोड़ कर गए तब उनके कब्जे में 54 देश थे लेकिन बंटवारा केवल भारत का हुआ क्योंकि ये बंटवारा गाँधी, नेहरू और जिन्ना को कुबूल था।

आज देश का सौभाग्य है कि वो नरेंद्र मोदी के हाथों में सुरक्षित है। ईश्वर नरेंद्र मोदी को शक्ति दे जिससे वो देश के शत्रुओं को परास्त कर सकें, चाहे आंतरिक हों या बाहरी।

सुभाष चन्द्र
“मैं वंशज श्री राम का”

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UNSUNG HEROES OF INDIAN STRUGGLE BESIDES GANDHIS AND NEHRU.

–By Hemang Kelaiya


Our nation, ‘HINDUSTAN’ is celebrating ‘Azadi ka Amrit Mahotsav’ this year and it’s time to revisit history and remind ourselves how we got independence. We did not get Independence ‘Bina Khadag, Bina dhaal’ as claimed, but the other way round. There are many who fought and sacrificed their lives to get back our land from Imperial forces.


It all started in the first war of freedom fought in 1857. Do you know that for almost a month Nana Saheb Peshwa took control of Kanpur and Bithoor? Yes, it was our first victory against British and Nana Saheb was first to achieve it. Sadly, that part of history is kept away from us and we have been taught that it was just one sided victory of British in 1857.


Is Nehru really the first prime minister of free India? What about Netaji Subhash Chandra Bose, who hoisted our Tricolor flag on 29th December, 1943 at Port Blair of Andaman and Nicobar islands? Netaji Bose travelled half of the world just to create an army of Indians to fight oppression of British Raj. This was around the same time when Gandhi called all Indians to join allied forces and fight for the same British which killed millions of Indians. Ironically the same Gandhi who is worshipped for his non-violence preaching had asked Indians to join war and kill Germans and Japanese to protect interests of British crown. Now you decide who the real hero is!


Mulu Manek and Jodha Manek of Okha, the Waghir leaders of Okha Mandal in Gujarat were always in favor of freedom. To maintain that freedom they also joined freedom war of 1857. This was a severe setback to British rule. They fought till their last breath for freedom of their motherland. But, they are labeled as just looters in history books.


There were some pockets in our Country which were not free even after 15th August, 1947. Some European controlled territories and a couple of princely states wanted to be a part of Pakistan. Among them, one such state was Junagadh in Gujarat. The ruler, Nawab Mohabbat Khan wanted to sign Instrument of accession with Pakistan as his minister Shanawaz Bhutto (Grandfather of Benazir Bhutto) suggested him to. This was like creating a second Kashmir and as usual Nehru was helpless. At that time people of Gujarat came forward and under the leadership of Shamaldas Gandhi, created a temporary govt. which was silently backed by Sardar Patel. This govt. is famously known as ‘Arazi Hakumat’. They gathered people to fight against Mujahids of Nawab. People fought bravely and freed Junagadh from the Nawab and Junagadh remained as a part of India. Junagadh, formally became part of India on 2nd February, 1948. This great struggle of people against tyranny has been wiped out from text books as a part of appeasement. But, a visit to such places of war and meeting with heroes of that struggle reminds us of their sacrifice for their motherland. Though the same is not mentioned in our history books.


Mr. Clement Attlee, who was a leader of Labour Party and British Prime Minister between 1945 & 1951, during his visit to India in 1956, said to the then Governor of West Bengal Justice P B Chakraborthy that contribution of M.K. Gandhi and Congress into forcing British to leave India was in his words ‘Minimal’. It was Netaji Subhash Chandra Bose and the Navy revolt of 1946 which ignited fire. Many Indians still don’t know that in 1946 many Indian sailors of the then Royal British Indian Navy revolted and aimed canons of ships in Mumbai at officers’ mess and were about to destroy it but with the help of some Indians who were loyal to British crown they were captured. After that incident British feared that India won’t be under the spell of non-effective nonviolence for long and many Indians would follow the path shown by Netaji Bose. Hence, they thought it’s better to leave India with dignity.


These are some of the few stories of our Freedom Struggle. There are thousands of them and many are not known to most Indians. It’s time to remember all of them and not limit our INDEPENDENCE to one person or party. It was a fight of all INDIANS and claim of a few is nowhere near the truth. Let’s salute these warriors and pay our tribute to their sacrifice for our great nation.

Jai Hind.

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